
Artist Sudhir Singh-सुधीरा
कितने रावण फूंक दिए पर अब तक बुराई ज़िंदा है । तुम जश्न मनाओ जितने भी सुधीरा तो शर्मिंदा है ।
कितने रावण फूंक दिए पर अब तक बुराई ज़िंदा है ।
तुम जश्न मनाओ जितने भी सुधीरा तो शर्मिंदा है ।
लंबी लंबी फेंकते हो मगर कर्म तुम्हारे छोटे हैँ ।
अच्छा दिखावा करते हो पर कर्म तुम्हारे खोटे हैँ
बाहर शक्ल में मुस्कुराहट मगर रोता अंदर परिंदा है ।
तुम जश्न मनाओ जितने भी सुधीरा तो शर्मिंदा है ।
धर्म के नाम पे लड़ते हो कहाँ अकल तुम्हारी खोई है
पढ़ लिख के क्या फ़ायदा जब बुद्धि तुम्हारी सोई है
काम कहाँ से होगा अब सोया अब तो कारिंदा है
तुम जश्न मनाओ जितने भी मगर सुधीरा तो शर्मिंदा है ।
दया धर्म की बात करते कुक्कड़ मुर्गे खाते हो
Love u love u बोल रहे बेज़ुबानों को मार के खाते हो ।
प्यार की बातें करता घूमे जो सबसे बड़ा दरिंदा है
तुम जश्न मनाओ जितने भी मगर सुधीरा तो शर्मिंदा है ।
मंदिर मस्जिद का मुद्दा अब सबके जीवन में छाया है ।
ग़रीब आदमी मर रहा भूख ने उसको तड़पाया है
मंदिर मस्जिद क्या खाना देंगी उनकी वजह से कौन यहां ज़िंदा है ।
तुम जश्न मनाओ जितने भी पर सुधीरा तो शर्मिंदा है ।
लो नया साल साल भी आ गया है मगर कितनी बुराई त्यागी हैं ।
नए जश्न पे नया नई बुराई कदम कदम पे जागी है
भाईचारा देखना है तो गधोला में रामपाल बिंदा है ।
तुम जश्न मनाओ जितने भी पर सुधीरा तो शर्मिंदा है ।