
Artist Sudhir Singh-सुधीरा
वो अभी तक हवा में महल बना रहा है...
वो अभी तक हवा में महल बना रहा है...

उसे नहीँ पता कि तूफ़ान आ रहा है...
वो क्यूँ पागल पंती किये जा रहा है?
बारिश के आसार साफ़ दिख रहे हैँ...
वो खुले आसमान के नीचे कोई तस्वीर बना रहा है...
वो क्यूँ पागल पंती किये जा रहा है?
कितने बरगद के पेड़ है राह में...
एक आदमी पागल है बस चला जा रहा है...
वो क्यूँ पागल पंती किये जा रहा है?
वो ख़ुद किराये के घर में रहता है...
मुझे घर बसाने की नसीहत दिये जा रहा है...
वो क्यूँ पागल पंती किये जा रहा है?
जवालामुखी के ढेर पे बर्फ़ लिये बैठा है...
ख़ुद को समझदार बता रहा है...
वो क्यूँ पागल पंती किये जा रहा है?
आईने में ख़ुद की तस्वीर से पूछ रहा है...
बात तू कौन है मेरे जैसा दिखे जा रहा है?
वो क्यूँ पागल पंती किये जा रहा है?
बार बार ख़ुद को पाक साफ़ बता रहा है...
लगता है वो कोई गुनाह कर के आ रहा है...
वो क्यूँ पागल पंती किये जा रहा है?
आज वो बहुत हँसे जा रहा है...
किस ग़म को छुपाया जा रहा है?
वो क्यूँ पागल पंती किये जा रहा है?
आज वो बहुत शर्मा रहा है...
ये प्यार है या कोई ग़लत काम करके आ रहा है...
वो क्यूँ पागल पंती किये जा रहा है?
वो आज मुझे सुनना ही नहीँ चाह रहा है...
बता मैं दिल से उतर गया या वो भाव खा रहा है?
पूछे "सुधीरा" वो क्यूँ पागलपंती किये जा रहा है?